6 सीटें हारने से जमीनी कार्यकर्ता भले ही बेहाल लेकिन वह मालामाल!
- – चर्चा में बड़े पद के माध्यम से मालामाल हुआ नेता, पद मिलने के बाद दस गुना हुई नेता की सम्पत्ति
सुनील बाजपेई
कानपुर। यहां कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र में 10 में से 6 सीटें में हार जाने के कारणों को लेकर भाजपाइयों के बीच घमासान लगातार जारी है।इसके लिए एक जिम्मेदार पदाधिकारी के नेतृत्व पर उंगली उठाई जा रही है।
दरअसल कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र के बड़े पद की कमान पहले जिस भाजपा नेता के पास थी,उनके कार्यकाल में हुए लोकसभा चुनाव में कानपुर बुंदेलखंड की सभी 10 सीटें भाजपा ही जीती थी ,लेकिन जब 10 सीटें जिताने वाले भाजपा नेता और बड़े पदाधिकारी बन गये तो
उनके स्थान पर कुर्सी पर बैठने वाले नेता जी का नेतृत्व सीटें हार गया।
6 लोक सभा सीटों पर हार से खफा जमीन से जुड़े भाजपाइयों के मुताबिक ऐसा इसलिए हुआ ,क्योंकि नेताजी ने बड़े पद वाली कुर्सी मिल जाने के बाद कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र की सभी सीटों पर भाजपा को जिताने के लिए परिश्रम करने के बजाय अपनी सीट यानी कुर्सी के माध्यम से कमाने का शौक पाल लिया। इस चक्कर में वह ऐसे अनेक लोगों को पार्टी में ले आए जो इसके पात्र नहीं थे।
पार्टी सूत्रों का दावा है कि ऐसा करने से नेताजी को तो भारी लाभ हुआ। मतलब आर्थिक लाभ का इरादा पूरा करने के इरादे से जो विवादित लोग शामिल किए गये वे पार्टी से ज्यादा एक नेता के लिए लाभदायक साबित हुए। यही कारण है कि 6 सीटें हारने के लिए इन्हीं पदाधिकारी नेता के स्वार्थ पूर्ण नेतृत्व को ही दोषी ठहराया जा रहा है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस बार भाजपा कानपुर बुंदेलखंड की सभी 10 सीटें भले ना जीत पाई हो लेकिन पदाधिकारी नेता अपनी आर्थिक हैसियत 10 गुना बढ़ाने में अवश्य ही कामयाब हुए हैं, जिसमें सबसे ज्यादा ऐसे लोगों का योगदान बताया जाता है , खुश होने के बाद जिन्हें न केवल भाजपा में शामिल किया गया बल्कि जमीन से जुड़े पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करते हुए दूसरे दलों से आए लोगों को सबसे ज्यादा महत्व भी दिया गया।
कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र के एक पूर्व पदाधिकारी के दावे पर यकीन करें तो वर्तमान पदाधिकारी ने पद हासिल करने के बाद सबसे पहला काम पार्टी को मजबूत करने वाला नहीं बल्कि आर्थिक रूप से खुद को मजबूत करने वाला काम किया।
6 सीटें हारने से परेशान कार्यकर्ताओं और अन्य पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी पर यकीन करें तो भारतीय जनता पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र की सभी दस सीटें भले ना जीत पाई हो, लेकिन पदाधिकारी भाजपा नेता ने अपनी संपत्ति में 10 गुना से भी अधिक इजाफा अवश्य कर लिया, और जिसे भी इस बात पर यकीन ना हो वह खुद छानबीन कर ले कि पद हासिल करने के पहले नेताजी की आर्थिक हैसियत क्या थी और पद हासिल करने के बाद किस-किस रूप में और कितनी हो गई है ?
यही नहीं कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र में 6 सीटें हारने को लेकर कार्यकर्ता भी अपनी समीक्षा में इसका कारण अपने हिसाब से बता रहे हैं। एक और पदाधिकारी नेता को कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र की 6 सीटें हारने के लिए दोषी ठहराते हुए वह अपनी बात पार्टी के बड़े नेताओं तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का भी प्रयोग कर रहे हैं। ऐसी ही एक पोस्ट निराला नगर के पूर्व मंडल अध्यक्ष अरुण कुमार बाजपेई उर्फ बउवा बाजपेई और किसान मोर्चा के पदाधिकारी धीरज उर्फ धीरू बाजपेई ने भी इस बारे में जिस आशय की पोस्ट डाली है ,उसके मुताबिक जो अपनी अपनी जाति की मठाधीसी कर रहे हैं और एसी कमरे में बैठकर मौज लेते रहे पूरे 5 वर्ष। सबसे पहले इनकी समीक्षा होनी चाहिए।
पोस्ट में यह भी लिखा गया है कि हमारे कानपुर में तो पाल समाज के क्षेत्रीय अध्यक्ष हैं जिनका स्कोर रहा 10 में 4 , यानी की 6 सांसद चुनाव हार गए। लेकिन पाल जी ने कम समय में तरक्की बहुत किया।
वायरल हुई पोस्ट में लिखा गया है कि अकबरपुर लोकसभा में पाल समाज ने भाजपा को वोट नहीं दिया।
कुल मिलाकर कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र की 10 में से 6 सीटों पर हुई भाजपा की पराजय ने जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को बहुत हताश और निराश भी किया है। उनका दावा है कि अगर निष्पक्ष समीक्षा की जाए तो इस हार के लिए महत्वपूर्ण पदों पर बैठे स्वार्थी नेता पदाधिकारी ही दोषी साबित होंगे, लेकिन क्या ऐसा कुछ वास्तव में हो पाएगा। यह आने वाला वक्त ही बताएगा।