भेद विभीषण ने दिए
दुनिया रखती क्यों नहीं, आज विभीषण नाम। तुम तो सब कुछ जानते, बोलो मेरे राम।।
वध दशानन कह रहा, ये भी तो इक बात। करो विभीषण सा नहीं, भाई पर आघात।।
जयचंद, शकुनी, मंथरा, और दुष्ट मारीच।नीचों के इतिहास में, रहे विभीषण नीच।।
गैरों से ज्यादा कठिन, अपनों की है मार। भेद विभीषण से गया, रावण लंका हार।।
भेद विभीषण ने दिए, गए दशानन हार। जीती लंका राम ने, कर भाइयों में रार।।
वैरी से ज्यादा किया, रावण पर यूं घात। भेद विभीषण ने दिए, कही जिगर की बात।।
सौरभ विषधर से अधिक, विष अपनों के पास। कभी विभीषण पर नहीं, करना मत विश्वास।।
दुश्मन में ताकत कहाँ, पकड़ सके जो हाथ। कुंभकर्ण से तुम बनो, दो भाई का साथ।।
हर घर में कैसी लगी, ये मतलब की आग। अपनों को ही डस रहे, बने विभीषण नाग।।
सत्य धर्म की जंग में, जीत गए थे राम। मगर विभीषण तो रहे, सदियों तक बदनाम।।
-डॉ. सत्यवान सौरभ