उपन्यास मां – भाग 38 अम्मा बाबूजी

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उपन्यास मां – भाग 38 अम्मा बाबूजी

रश्मि रामेश्वर गुप्ता
बिलासपुर छत्तीसगढ़

मिनी जिस घर में किराए से रहती थी वहाँ एक बुजुर्ग अम्मा बाबूजी और उनके बेटे बहु और नाती पोते रहते थे। पूरा एक मुहल्ला बाबूजी के बेटे बहु और नाती पोते से भरा था। बाबूजी ने मिनी को ऊपर का कमरा रहने को दिया था। मिनी को बिल्कुल अपनी बेटी की तरह रखे थे। बाबू जी मिनी की शादी में भी गए थे। मिनी की विदाई याद करके उनकी आखों में आंसू छलक जाते थे। अम्मा बाबूजी की इजाजत के बगैर किसी को भी मिनी से मिलने की इजाज़त नही थी। आखों के तारे की तरह मिनी की हिफाज़त अम्मा बाबूजी करते थे। कभी किसी प्रकार की कोई तकलीफ नही होने देते थे।
जब सर् आते तो बिल्कुल दामाद की तरह उनकी खातिरदारी होती। पूरे गांव के लोग मिनी को बेटी और सर को दामाद मानते थे। मिनी के विद्यालय में भी स्टाफ के सभी सदस्य सर को विद्यालय बुलाते और उनकी ख़ातिरदारी दामाद के जैसे ही करते।
गांव का माहौल कितना अपनापन लिए होता है।
बाबूजी के बेटे बहु को मिनी भैया भाभी कहती थी। भाभी हमेशा मिनी को ससुराल के नाम से चिढ़ाया करती। हंसी ठिठोली करके मज़ा लिया करती। सर अपने विद्यालय वाले गांव में रहते थे।सर को जब मिनी के गांव आना होता तो अपने घर से सुबह 6 बजे निकलते तो बिना कही रुके बिना कुछ खाये -पिये बस पे बस बदलते हुए शाम 6 बजे मिनी के गांव पहुँच पाते थे।
धीरे धीरे वो दिन भी आया जब मिनी अपने परिवार को खुशखबरी देने वाली थी। सातवे महीने में सासूमाँ ने जिद करके मिनी को अपने पास बुलवा लिया। सासूमाँ बहुत खुश थी। उन्होंने सीमन्त संस्कार के आयोजन की पूरी तैयारियां करवाई। घर में हर प्रकार के पकवान बनवाये। बहुत खुश होकर सभी को निमंत्रण दिए गए। ससुराल के सारे लोग आये परंतु मिनी के मायके से कोई भी नही आया। कारण वही था कि तीसरे जेठ जेठानी ने दोनो तरफ का माहौल इतना खराब कर दिया था कि ससुराल वाले मायके वालो को देखना पसंद नही करते थे और मायके वाले भी ससुराल के लोगो को देखना पसंद नही करते थे।
बस इन दोनो के बीच कोई अगर आहत हो रहा था तो वो थे मिनी और सर। ससुराल में खुशियां मनाई गई।
मिनी और सर् को बैठाकर सारी परंपराएं निभाई गई। बाहर के मेहमान आते वो पूछते- “बहू के मायके से कोई नही आया?”
ससुराल के लोग बस इतना कहते- “नही आये।”
मिनी ने खुश होकर सारे रस्मो रिवाज में भागीदारी निभाई परंतु उसका दिल जानता था कि उसकी आत्मा कितनी दुखी है। उसने कभी स्वप्न में भी नही सोचा था कि शादी के बाद वो मायके और ससुराल के बीच इस तरह की कड़ी बन जाएगी।
इस कड़ी को अगर किसी ने मजबूती दी थी तो वो थी मिनी और सर दोनो की माँ जो एक दूसरे से कभी नही मिले थे परंतु दोनो के दिल काफी जुड़े हुए थे। दोनो के मन में एक दूसरे के प्रति कभी कोई कटुता नही आई और दोनो ही इस बात को बखूबी समझते थे कि ये सारी गड़बड़ियों की जड़ कौन है ।
वर एवं कन्या दोनो पक्ष की माँ को एवं महिला सदस्यों को एक दूसरे से मिलाने के लिए ही सीमन्त संस्कार का आयोजन किया जाता है परंतु दोनो मां एक दूसरे से इसमें भी नही मिल पाए।
प्रेम कभी दूरियों की मोहताज़ नही होती। दोनो दूर-दूर रहकर भी एक दूसरे की भावनाओं को पूर्णतः समझते थे ये मिनी और सर दोनो का सौभाग्य रहा………………………..क्रमशः

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