उपन्यास मां – भाग 32 आशा और विश्वास

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उपन्यास मां – भाग 32 आशा और विश्वास

                                     रश्मि रामेश्वर गुप्ता
                                  बिलासपुर छत्तीसगढ़

मिनी को पूर्ण विश्वास था कि ये पत्र माननीय प्रधानमंत्री जी तक पहुचेगा ही और वे इसे अवश्य पढ़ेंगे। अगर उनके परिवार के या किसी अन्य व्यक्ति के हाथ भी ये पत्र लगा तो वे अवश्य इसे प्रधानमंत्री जी को देंगे। लोग कहते हैं सिर्फ आशा और विश्वास पर ही ये धरती टिकी हुई है इसलिए हमे सदैव अच्छे काम करते रहने चाहिए । फल कब मिलेगा इस ओर ध्यान देने वाला हमेशा पथ से भटक जाता है । जिसका ध्यान कर्म के बजाय फल पर अटक जाता है वह कभी अच्छे कार्य नही कर पाता। ये बातें आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी की निबंध “उत्साह” के अंतर्गत मिनी ने अपनी कक्षा के बच्चों को सिखाई थी।
मिनी ने प्रधानमंत्री जी को दूसरा पत्र लिखा-
माननीय प्रधानमंत्री जी,
सादर प्रणाम!
माननीय सर्वप्रथम आपको सफलता पूर्वक एक वर्ष पूर्ण करने हेतु कोटिशः बधाई। माननीय हमारे देश में जब किसी लड़के की शादी होती है तो वह सात वर्ष तक यह सोचकर डरता है कि अगर इस अवधि में उसकी पत्नि के साथ कुछ भी दुर्घटना घटती है तो वह जेल जा सकता है परंतु वही बेटा अपने बुज़ुर्ग माता-पिता के साथ कुछ भी अभद्रता करते हुए जरा भी नही डरता। जवान बेटे के रहते हुए भी बुज़ुर्ग माता-पिता वृद्धाश्रम में रहते है केवल इतना ही नही अपने घर के रहते हुए भी वे वहाँ नारकीय जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर होते है।
कितने माता-पिता घर से बेघर किये जाने के कारण रास्ते में तड़प-तड़प कर मर जाते है।क्या हमारे देश में ऐसा कोई कानून नही है जिससे ऐसे बेटे अपने माता-पिता को सताते हुए डरे। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की उक्ति वाले इस देश में बुजुर्गों की ऐसी हालत देखकर रूह कांप जाती है। मेरी आपसे विनम्र विनती है कि आप हमारे देश में कोई ऐसा कानून बनाएं जिससे हमारे देश के बेटे अपने बुज़ुर्ग माता-पिता को प्रताडित करने से पहले सौ बार सोचे। मैं इस विषय पर आपको पहले भी पत्र प्रेषित कर चुकी हूँ। इस विश्वास के साथ मैं आपको पुनः ये पत्र प्रेषित कर रही हूँ कि कभी न कभी आप मेरे पत्र पर जरूर विचार करेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे देश में आपके द्वारा ही बुज़ुर्गो के लिए भी अच्छे दिन आएंगे। मैं अपनी मां की आपबीती आपको पहले ही प्रेषित कर चुकी हूँ परंतु मेरा उद्देश्य हमारे देश के सभी बुज़ुर्गो को कानूनी संरक्षण प्रदान करना है न कि सिर्फ अपनी मां को सुरक्षा प्रदान करना। इस आशा और विश्वास के साथ कि आप हमारे देश की उक्ति “मातृ देवो भव, पितृ देवो भव” को कायम रखने के लिए अवश्य कोई न कोई रास्ता निकलेंगे मैं अपनी लेखनी को यही विराम देती हूँ।
” शेष शुभ ”
आपकी बहन
मिनी
मिनी ने फिर से रजिस्टर्ड डांक से पत्र प्रेषित किया। मिनी अखबारों में, न्यूज़ चेनल में तब अधिक से अधिक समाचार बुज़ुर्गो के साथ प्रताड़ना के ,उनकी समास्याओँ के , वृद्धाश्रम की दशाओं के और वहाँ रहने वाले बुज़ुर्गो की भावनाओ के देखा करती थी। मिनी सोचा करती थी कि जब आदमी अपनी मां की अपने पिता की सेवा नही कर सकता तो जिस जगह में सैकड़ो बुज़ुर्ग होते है वहाँ उनकी देखभाल कैसे की जाती होगी?
मिनी न्यूज़ में देखती थी कि मथुरा के स्टेशन में बच्चे कैसे अपने माता-पिता को पानी पीकर आने के बहाने बनाकर छोड़ जाते है, सिर्फ इसलिए कि वहाँ वृद्धाश्रम है। लोग ऐसा क्यों नही सोचते कि एक दिन सभी को बुज़ुर्ग होना ही है।
मिनी को याद आती थी वो बाते जो दादा-दादी बचपन में सिखाया करते थे- ” बेटा! जो व्यवहार तुम्हे अपने प्रति अच्छा नही लगता वह दूसरों के प्रति मत करो। जो खाना तुम्हारे लिए खराब है उसे दुसरो को भी मत दो। अगर किसी जीव को चाहे वह चीटी ही क्यों न हो , सताओगे तो वह दूसरे जन्म में तुमसे बदला अवश्य लेगी तब तुम चींटी बनोगे और वह इंसान।” मिनी के दिल दिमाग में ये सारी बाते बचपन से बैठी हुई थी। माँ के साथ कुछ भी व्यवहार करने से पहले वो सोचती कि अगर मां की जगह वो बिस्तर पर रहती तो क्या होता………………………….क्रमशः

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