कैडर वोट को बचाने की जुगत में बसपा

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कैडर वोट को बचाने की जुगत में बसपा

– चंद्रशेखर दलित राजनीति का नेतृत्व करने का कर रहे प्रयास
-आशुतोष पाण्डेय
लखनऊ (सन्मार्ग)। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर खुद को खड़ा करने की कोशिश में जुट गई है। चंद्रशेखर भी दलित राजनीति का नेतृत्व करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। वह उपचुनाव भी लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। यही वजह है कि बसपा दलितों को एकजुट कर उपचुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। खतरा यह है कि यदि वह ऐसा नहीं करती तो बचा हुआ दलित वोट बैंक भी उससे न छिटक जाए। बसपा अपने कैडर वोट को बचाने के लिए हर नुस्खा आजमा रही है। अब संगठन में भी दलितों को तरजीह दे रही है। लोकसभा चुनाव के बाद हाल ही में पार्टी की जिला इकाइयों का गठन किया गया है। इनमें 60 फीसदी पदाधिकारी एससी हैं। वहीं 30 फीसदी ओबीसी और 10 फीसदी मुस्लिम। चुनिंदा जिलों में इक्का-दुक्का ही सवर्ण पदाधिकारी बनाए गए हैं। दलित, ओबीसी और मुस्लिम समीकरण साधने के साथ ही सबसे दलितों को खास तवज्जो दी जा रही है। दरअसल, 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद से बसपा का प्रदर्शन लगातार गिरता जा रहा है। खासतौर से पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। विधानसभा चुनाव 2022 में उसका वोट प्रतिशत 12.80 रह गया और मात्र एक सीट हासिल हुई। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत 9.38 पर सिमट गया और कोई सीट नहीं मिली। इन नतीजों से साफ है कि बसपा से उसका परम्परागत दलित वोट भी छिट गया। यह बात भी आई कि पहले भाजपा ने उसके दलित वोट में सेंध लगाई और पिछले लोकसभा चुनाव में INDIA गठबंधन भी कुछ हद तक कामयाब रहा। बसपा की पहली चुनौती उसे अपना दलित वोट बैंक वापस लाने की है। यही वजह है कि वह उपचुनाव में सभी 10 सीटों मजबूती से लड़ने की तैयारी कर रही है। हाल ही में हाथरस कांड पर भी जितनी हमलावर मायावती दिखीं, उतना कोई और नहीं दिखा। तमिलनाडु में अपने प्रदेश अध्यक्ष की हत्या पर वह खुद अपने भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनंद के साथ वहां संवेदना प्रकट करने गईं। इस हत्या को भी उन्होंने दलितों पर हमले से जोड़ते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी। मायावती लगातार दलितों को आगाह कर रही हैं कि इन बाबाओं के चक्कर में न पड़ें। कोई दूसरी पार्टी भी उनकी हितैषी नहीं है। बसपा के साथ जुड़कर खुद सत्ता हासिल करें। अब संगठन में भी सबसे ज्यादा तवज्जो दलितों को ही दे रही हैं। बसपा शुरुआत से दलित, ओबीसी और मुस्लिम गठजोड़ की राजनीति करती रही है। इनमें भी खासतौर से दलित इस गठजोड़ का मुख्य आधार रहा है। उसे यह डर सता रहा है कि अभी तो कुछ दलित छिटके हैं। बचा हुआ दलित वोट भी छिटक गया तो फिर पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। इसमें भाजपा और फिर INDIA गठबंधन दोनों लगातार सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। अब नया खतरा चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से भी है। जिस तरह चंद्रशेखर ने करीब डेढ़ लाख वोट से लोकसभा सीट जीती और अन्य प्रत्याशी भी अच्छे वोट लाए, तब से वह चर्चा में हैं।

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