देश में अशान्ति की राह पर कांग्रेस
एन0के0शर्मा
देश की राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस पार्टी एक महत्वपूर्ण किरदार के रूप में जानी जाती रही है, लेकिन वर्तमान समय में यह पार्टी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। एक तरफ यह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, वहीं दूसरी ओर इसके अंदरूनी और बाहरी रणनीतियों को लेकर तीखी आलोचना भी हो रही है। कांग्रेस का एक लंबा इतिहास है, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम से लेकर देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को गढ़ने में इसकी भूमिका अद्वितीय रही है। लेकिन आज यह पार्टी एक ऐसी स्थिति में है जहां उसके कदम देश में अशांति फैलाने की दिशा में उठते हुए नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी ने अपने स्वर्णिम दौर में राष्ट्रीय एकता और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए कार्य किया था, लेकिन वर्तमान समय में इसके विरोध का तरीका अक्सर उन सीमाओं को पार कर जाता है, जिनसे राष्ट्रीय एकता और सामाजिक शांति प्रभावित हो सकती है। कई बार यह देखा गया है कि पार्टी की नीतियों और रणनीतियों का जोर सरकार का विरोध करने के नाम पर देश की आंतरिक स्थिरता को कमजोर करने पर होता है। चाहे वह मुद्दा धार्मिक असंतोष का हो, सामाजिक न्याय का, या फिर जातिगत राजनीति का, कांग्रेस की नीतियां अक्सर ऐसे विषयों पर केंद्रित होती हैं, जो समाज में तनाव और ध्रुवीकरण का कारण बनते हैं।
पार्टी की वर्तमान स्थिति एक गहरे आंतरिक संघर्ष का भी संकेत देती है। नेतृत्व संकट, नीतिगत असमंजस और पार्टी के भीतर गुटबाजी की स्थिति ने कांग्रेस को कमजोर कर दिया है। कांग्रेस का पुराना जनाधार, जो कभी समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था, अब बिखर चुका है। इसके साथ ही, पार्टी के भीतर युवा नेताओं और अनुभवी नेताओं के बीच मतभेद ने संगठनात्मक ढांचे को और अधिक क्षीण कर दिया है। यह स्थिति कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती है क्योंकि अगर वह अपनी आंतरिक एकजुटता को मजबूत नहीं करती है, तो वह देश की राजनीति में एक प्रभावी विपक्ष की भूमिका भी निभाने में असफल हो जाएगी।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की असफलता भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। वर्तमान नेतृत्व न तो पार्टी को एक स्पष्ट दिशा दे पा रहा है और न ही जनता के सामने कोई ठोस वैकल्पिक राजनीतिक एजेंडा प्रस्तुत कर पा रहा है। इस नेतृत्व संकट का असर पार्टी की नीतियों और विरोध के तरीकों पर भी पड़ता है। जनता के बीच यह धारणा बन रही है कि कांग्रेस अब एक जिम्मेदार विपक्ष के बजाय एक अवसरवादी दल के रूप में कार्य कर रही है, जिसका उद्देश्य केवल सरकार के हर फैसले का विरोध करना है, भले ही वह देश के व्यापक हित में हो या नहीं।
कांग्रेस की नीतियों और रणनीतियों पर सवाल तब और बढ़ जाते हैं जब पार्टी के कुछ नेताओं के बयान समाज में हिंसा और अस्थिरता को बढ़ावा देते नजर आते हैं। ऐसे वक्त में जब देश को एक सकारात्मक विपक्ष की जरूरत होती है, जो सरकार की गलतियों को उजागर करे और रचनात्मक सुझाव दे, कांग्रेस का यह रुख उसे आलोचना के केंद्र में खड़ा कर देता है। इसके चलते न केवल पार्टी की छवि खराब होती है, बल्कि इससे समाज में भी एक गलत संदेश जाता है, जो सामाजिक असंतोष को और बढ़ावा दे सकता है।
कांग्रेस के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी पुरानी छवि को फिर से स्थापित करे, जहां पार्टी न केवल एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाए, बल्कि एक जिम्मेदार राजनीतिक दल के रूप में अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखे। इसके लिए उसे अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करना होगा, आंतरिक कलह को दूर करना होगा, और नेतृत्व को एकजुट और दृढ़ बनाना होगा। साथ ही, उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उसकी नीतियां और बयान देश की शांति और एकता को बनाए रखने में सहायक हों, न कि उन्हें खतरे में डालने वाले।
आज के दौर में, जहां देश को एक सशक्त और जिम्मेदार विपक्ष की आवश्यकता है, कांग्रेस के सामने यह चुनौती है कि वह इस भूमिका को सही ढंग से निभाए। अगर पार्टी केवल सत्ता विरोधी राजनीति में उलझी रहती है और समाज में अशांति फैलाने वाली नीतियों को अपनाती है, तो इसका परिणाम न केवल पार्टी के लिए, बल्कि देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है। कांग्रेस को अपने पुराने आदर्शों की ओर लौटना होगा, जहां उसने सामाजिक और राष्ट्रीय एकता को सर्वोपरि माना था।