एडवोकेट अमेंडमेंट बिल 2025 को लेकर देशभर में वकीलों के विरोध के बाद केंद्र सरकार ने बिल में बदलाव करने का फैसला किया है। कानून मंत्रालय ने शनिवार (22 फरवरी) को बयान जारी कर कहा- सरकार ने वकीलों की आपत्तियों के मद्देनजर बिल में बदलाव का फैसला लिया है।
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने आश्वासन दिया कि बिल को अंतिम रूप देने से पहले सरकार सभी मुद्दों की अच्छी तरह से जांच करेगी और जरूरी कदम उठाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार ऐसा कोई प्रावधान नहीं करेगी जिससे कानूनी पेशे की आजादी और गरिमा कमजोर हो।
केंद्र सरकार कानून में सुधार के लिए बिल ला रही केंद्र सरकार 1961 के एडवोकेट एक्ट में बदलाव करने के लिए अमेंडमेंट बिल लाने की तैयारी में है। लोगों के सुझाव के लिए बिल का फाइनल ड्राफ्ट सामने आने पर देशभर के वकील बिल के विरोध में आ गए थे।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) समेत देश के अधिकांश बार काउंसिल ने केंद्र सरकार से बिल वापस लेने की मांग की थी। ऐसा न करने पर देशभर में हड़ताल की बात कही थी।
विरोध के 5 कारण: हड़ताल पर रोक लगेगी, एक वोट की पॉलिसी भास्कर ने इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के वकील ध्रुव जोशी और दिल्ली हाईकोर्ट के वकील मनीष भदौरिया से बातचीत करके तथ्यों को बारीकी से समझा। इन 5 कारणों से वकील नाराज हैं।
1. हड़ताल-बहिष्कार पर बैन नए बिल की धारा 35A वकील या वकीलों के संगठन को कोर्ट का बहिष्कार करने, हड़ताल करने या वर्क सस्पेंड करने से रोकती है। इसका उल्लंघन वकालत के पेशे का मिसकंडक्ट माना जाएगा और इसके लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकेगी।
मौजूदा व्यवस्था: हड़ताल करने पर रोक नहीं, प्रोफेशनल मिसकंडक्ट माना जाता है।
2. प्रोफेशनल मिसकंडक्ट प्रोफेशनल मिसकंडक्ट की वजह से किसी का नुकसान होता है तो बिल की धारा 45B के तहत प्रोफेशनल मिसकंडक्ट के कारण वकील के खिलाफ कार्रवाई के लिए BCI में शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी।
मौजूदा स्थिति- अपने मुवक्किल को धोखा देना ही प्रोफेशनल मिसकंडक्ट माना जाता है। इसकी शिकायत BCI से होती है।
3. कानूनी व्यवसायी की परिभाषा नए बिल में कानूनी व्यवसायी (धारा 2) की परिभाषा व्यापक बनेगी। इसमें कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस के साथ ही कार्पोरेट वकीलों, इन-हाउस परामर्शदाताओं, वैधानिक निकायों और विदेशी कानूनी फर्मों में कानूनी काम में लगे लोगों को भी कानूनी व्यवसायी माना जाएगा।
मौजूदा व्यवस्था- कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस करने वालों को ही कानूनी व्यवसायी माना जाता है।
4. वकीलों पर सरकारी निगरानी एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 4 में संशोधन का प्रस्ताव है। इससे केंद्र को BCI में निर्वाचित सदस्यों के साथ 3 सदस्यों को नामित करने का अधिकार मिल जाएगा। इससे केंद्र कानून के प्रावधानों को लागू करने में BCI को निर्देश दे सकेगी।
मौजूदा स्थिति- BCI के सदस्य राज्य बार काउंसिल द्वारा चुने जाते हैं।
5. एक बार-एक वोट की नीति बिल में एक नई धारा 33A जोड़ी गई है। इसके मुताबिक अदालतों, ट्रिब्यूनल और अन्य प्राधिकरणों में वकालत करने वाले सभी वकीलों को उस बार एसोसिएशन में पंजीकरण कराना होगा, जहां पर वे वकालत की प्रैक्टिस करते हैं।
शहर बदलने पर वकील को 30 दिन के अंदर बार एसोसिएशन को बताना होगा। कोई वकील एक से ज्यादा बार एसोसिएशन का सदस्य नहीं हो सकेगा। वकील को केवल एक ही बार एसोसिएशन में मतदान करने की अनुमति होगी। इसे वकील उनकी आजादी और वोट के अधिकार में केंद्र का दखल मान रहे हैं।
मौजूदा स्थिति: वकील एक साथ कई बार एसोसिएशन का सदस्य हो सकते हैं। सभी के चुनाव में वोट कर सकते हैं।