आज कबीर जयंती पर खास : धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए, मतलब कर्म फल भी समय पर
इस दुनिया में जो कुछ भी होता है, वह सब कुछ समय पर होता है। ना समय से पहले और ना ही समय के बाद में ,यानी समय पर जन्म समय पर जवानी, समय पर बुढ़ापा और समय पर मृत्यु। – – -और जन्म तथा मृत्यु के बीच के कालखंड यानी जीवन में किए जाने वाले किसी भी तरह के कर्म का फल भी समय पर ही मिलता है। शायद इसीलिए संत कवि कबीर दास ने भी कहा है – धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए…’
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आज हिंदी साहित्य के जाने माने महान कवि संत कबीरदास जी की 647वीं वर्ष गांठ है। एक ऐसे आध्यात्मिक महान कवि संत कबीरदास जी जो एक महान विचारक और समाज सुधारक भी थे। शायद वह एकमात्र कवि संत कबीर दास जी हैं ,जिन्होंने अपने पूरे जीवन में समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए कई दोहे और कविताओं की रचना की। कबीर दास जी हिंदी साहित्य के ऐसे कवि थे, जिन्होंने समाज में फैले आडंबरों को अपनी लेखनी के जरिए उस पर कुठाराघात किया था। कबीरदास जी ने समाज में फैले अंधविश्वास, रूढ़िवादी परंपराओं और पाखंड का विरोध करते हुए इंसानियत को सबसे ऊपर रखा। संत कबीर दास जी ने अपने दोहों और विचारों के जरिए जनमानस को प्रभावित किया था। आज भी उनके दोहे जीवन का सच बयां करती है, इन दोहों में सुखी जिंदगी और सफलता का राज छिपा है। ‘निंदक नियेरे राखिये, आंगन कुटी छवायें, बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय…’ दोहे के सहारे कबीर जी कहते हैं कि हमें निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने आंगन में कुटिया बनाकर कर निकट रखना चाहिए, क्योंकि वह हमारे अवगुण बिना साबुन और पानी के निर्मल कर देते हैं। जब कोई व्यक्ति हमारी निंदा करता है और ऐसे लोग अगर पास रहेंगे तो आपकी बुराइयां आपको बताते रहेंगे। “जंत्र मंत्र सब झूठ है, मति भरमो जग कोये, सार शब्द जानै बिना, कागा हंस ना होये…’ कबीर जी इस दोहे में कहते हैं कि जंत्र-मंत्र आदि सब झूठी बातें हैं। इससे बुद्धि भ्रमित हो जाती है, इसलिए इन सब बातों से पर गौर न करें, इनके जाल में फंसकर व्यक्ति सही गलत की समझ भूल जाता है। जब तक शब्द का ज्ञान नहीं तब तक मनुष्य ज्ञानी नहीं हो सकता वैसे ही जीवन के मूल तत्व और मंत्र को जाने बिना कौवा कभी भी हंस नहीं बन सकता है।
इस दुनिया में जो कुछ भी होता है, वह सब कुछ समय पर होता है। ना समय से पहले और ना ही समय के बाद में ,यानी समय पर जन्म समय पर जवानी, समय पर बुढ़ापा और समय पर मृत्यु। – – -और जन्म तथा मृत्यु के बीच के कालखंड यानी जीवन में किए जाने वाले किसी भी तरह के कर्म का फल भी समय पर ही मिलता है। शायद इसीलिए संत कवि कबीर दास ने भी यह भी कहा है – धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए…’ यानी हमें धैर्य पूर्वक नियमित रूप से अपने काम करते रहना चाहिए और समय आने पर ही उसके परिणाम प्राप्त होंगे, जैसे एक माली चाहे वृक्ष को सौ घड़े पानी से सींचे लेकिन उस वृक्ष पर फल ऋतु के आने पर ही लगता है धैर्य का फल भी मीठा होता है।
‘पाहन पूजे हरि मिले, मैं तो पूजूं पहार याते चाकी भली जो पीस खाए संसार..’ इस दोहे से कबीर ने सही कहा है कि यदि पत्थर पूजकर हरि प्राप्त हो जाते हैं, तो मैं पहाड़ पूजता। क्योंकि पहाड़ पूजने से क्या पता भगवान शीघ्र ही प्राप्त हो जाते। उनके अनुसार इससे तो मैं चक्की को पूजना उचित मानता हूँ क्योंकि वह सारे संसार का पेट भरने का कार्य करती है। जैसा कि सर्व विदित है कि संत कबीरदास जी ने आजीवन समाज में फैली बुराइयों और अंधविश्वास की निंदा करते रहे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से जीवन जीने की कई सीख दी हैं। आज भी लोग इनके दोहे गुनगुनाते हैं। कबीर जी को मानने वाले लोग हर धर्म से थे, इसलिए जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनके अंतिम संस्कार को लेकर हिंदू और मुस्लिम दोनों में विवाद होने लगा। कहा जाता है कि इसी विवाद के बीच जब शव से चादर हटाई गई तो वहां पर केवल फूल थे। इन फूलों को लोगों ने आपस में बांट लिया और अपने धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किया। उनका कृतित्व और आध्यात्मिक व्यक्तित्व यही बताता है कि
फल के लिए किसी भी रूप में किया जाने वाला अच्छा या बुरा कर्म ही जीवन में सुख या दुख का कारण बनता है। वह भी समय पर। ना समय से पहले और ना ही समय के बाद में। बिल्कुल समय पर।