भुगत रहा इतिहास

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भुगत रहा इतिहास।

सब विषयों में काम जो, आती हैं हर हाल।
अक्सर वो रफ़ कापियाँ, रखता कौन सँभाल।।

बनकर रहिए नमक-सा, इतना तो हर हाल।
सोच समझ तुमको करें, दुनिया इस्तेमाल।।

पढ़ लिखकर अब क्या करे, होना है बेजार।
सौरभ डिग्री, नौकरी, बिकती जब बाजार।।

अच्छा खासा आदमी, कागज़ पर विकलांग।
धर्म कर्म ईमान का, ये कैसा है स्वांग।।

हुई लापता नेकियां, चला धर्म वनवास।
कहे भले को क्यों भला, मरे सभी अहसास।।

गिरगिट निज अस्तित्व को, लेकर रहा उदास।
रंग बदलने का तभी, करता है अभ्यास।।

समझाइश कब मानते, बिगड़े होश हवास।
बचकानी सब गलतियां, भुगत रहा इतिहास।।

खामोशी है काम की, समझ इसे हथियार।
करता नहीं दहाड़कर, सौरभ शेर शिकार।।

-डॉ. सत्यवान सौरभ

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