सार्थक राजनीति से भटकता देश का नेतृत्व

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सार्थक राजनीति से भटकता देश का नेतृत्व

एन0के0शर्मा
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राजनीति का विशेष महत्व है, क्योंकि यह देश की दिशा और दशा निर्धारित करती है। सार्थक राजनीति का उद्देश्य होता है जनकल्याण, विकास, और समाज की प्रगति। परंतु, वर्तमान समय में यह देखने को मिल रहा है कि देश का नेतृत्व इन आदर्शों से भटक रहा है और व्यक्तिगत स्वार्थ, जातिवाद, धर्मवाद, और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो चुका है।

1.व्यक्तिगत स्वार्थ और सत्ता की भूख
वर्तमान समय में नेताओं में सत्ता की भूख और व्यक्तिगत स्वार्थ का प्रबल प्रभाव देखा जा सकता है। सत्ता प्राप्ति और उसे बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जाने की प्रवृत्ति ने राजनीतिक वातावरण को दूषित कर दिया है। इस प्रकार की राजनीति में नीतियों का निर्माण और उनका क्रियान्वयन जनहित के बजाय व्यक्तिगत लाभ और राजनीतिक स्थायित्व पर केंद्रित होता है।

उदाहरणस्वरूप, कई बार नेताओं द्वारा महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं को केवल इस आधार पर रोका या प्रारंभ किया जाता है कि उनका व्यक्तिगत या पार्टी का लाभ हो। इससे समाज के व्यापक हितों की अनदेखी होती है और विकास कार्यों में रुकावट आती है।

2.जातिवाद और धर्मवाद का प्रभाव
भारतीय राजनीति में जातिवाद और धर्मवाद का प्रभाव सदियों से रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में यह और भी गंभीर हो गया है। जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करना आसान होता है क्योंकि यह जनता की भावनाओं से जुड़ा हुआ है।

दुनियां के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मंदिर अर्थात संंसद भवन में जनता के द्वारा चुनकर भेजे गए तथाकथित माननीयों के बीच भी आजकल जाति और धर्म पर बहस एवं गाली-गलौच ही देश के विकास का सबसे बड़ा मुद्दा है। यह सब देखकर देश की जनता अपने चुनावी निर्णय पर दुःखी, सारा दर्द सीने में समेटे, स्वयं को ठगा सा महसूस कर रही है। उसकी पीड़ा की तो कोई बात तक नहीं करता।

राजनीतिक दल और नेता अक्सर जाति और धर्म के नाम पर वोट बटोरने के लिए सामाजिक विभाजन को और गहरा करते हैं। चुनावी भाषणों में जाति और धर्म के मुद्दों को उछालकर जनता की भावनाओं का दोहन किया जाता है। इससे समाज में आपसी भाईचारे और सद्भाव को नुकसान पहुँचता है और विभाजन की खाई और चौड़ी होती जाती है।

3.भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार राजनीति का एक और गंभीर पहलू है जिसने सार्थक राजनीति को क्षति पहुँचाई है। सत्ता में बैठे लोग अपने पद का दुरुपयोग करके निजी लाभ के लिए सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं।

भ्रष्टाचार का प्रभाव विकास कार्यों पर बहुत गहरा पड़ता है। कई बार महत्वपूर्ण परियोजनाओं में देरी निजी स्वार्थ के कारण ही होती है या उन्हें पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है क्योंकि अधिकारियों और नेताओं द्वारा भ्रष्टाचार के माध्यम से धन का बन्दर बांट किया जाता है। इससे सरकारी तंत्र कलंकित और सरकार के प्रति विश्वसनीयता कम होती है और जनता का विश्वास खत्म होता है।

4.नीतिगत अस्थिरता
देश की सार्थक राजनीति में नीतिगत अस्थिरता भी एक बड़ा मुद्दा है। सरकारें अक्सर अपने राजनीतिक लाभ के लिए नीतियों में बदलाव करती रहती हैं, जिससे विकास कार्यों की निरंतरता बाधित होती है।

नई सरकारें अक्सर पुरानी सरकार की नीतियों को बदल देती हैं, जिससे दीर्घकालिक योजनाओं पर बुरा असर पड़ता है। इससे निवेशकों का विश्वास कम होता है और देश की आर्थिक स्थिरता पर भी प्रभाव पड़ता है।

5.मीडिया और सामाजिक माध्यमों का दुरुपयोग
मीडिया और सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी एक बड़ा कारण है जिससे राजनीति भटक रही है। फेक न्यूज, प्रोपगैंडा और मिथ्या ऐतिहासिक तथ्यों के माध्यम से जनता को भ्रमित किया जाता है और असल मुद्दों से ध्यान हटाते हुए, कूट-रचित उद्देश्यों को श्रेष्ठ बताकर निजी हित एवं दल हित को साधने का प्रयास किया जाता है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फेक न्यूज का प्रसार तेजी से होता है और जनता इसे सच मानकर अपने निर्णय ले लेती है। इससे एक स्वस्थ एवं सार्थक राजनीतिक संवाद की कमी होती है और जनता असली मुद्दों से भटक जाती है।

6.जनता की सहभागिता का अभाव
राजनीति का एक प्रमुख उद्देश्य होता है जनता की सहभागिता को सुनिश्चित करना। किन्तु आज के समय में जनता और उसके विचारों की सहभागिता केवल चुनावों तक सीमित रह गई है।

इसके बाद नीतियों और योजनाओं के निर्माण में जनता की सहभागिता नहीं होती। इससे नीतियों का जनहित में निर्माण और क्रियान्वयन कठिन हो जाता है। जनता की सक्रिय भागीदारी से ही राजनीति में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ सकता है।

इस प्रकार, देश का नेतृत्व आज जिस दिशा में जा रहा है, वह अत्यंत चिंताजनक है। सार्थक राजनीति का अभाव देश के विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। इसके लिए आवश्यक है कि नेतृत्व अपने कर्तव्यों को समझे और व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर जनहित में काम करे।

साथ ही, जनता को भी अपनी भूमिका को समझना होगा और राजनीति में सक्रिय भागीदारी निभानी होगी। जब जनता जागरूक होगी और अपने नेताओं से प्रश्न पूछेगी, तभी नेता भी जिम्मेदारी से कार्य करेंगे। एक सशक्त, समृद्ध और सर्वांगीण विकासशील राष्ट्र का निर्माण करने के लिए आवश्यक है कि राजनीति सार्थक और जनहितकारी हो।

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