लम्बी होती सनातन शत्रुओं की श्रंखला:

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लम्बी होती सनातन शत्रुओं की श्रंखला:

एन0के0शर्मा
सनातन धर्म, अर्थात हिन्दुत्व अपने आप में विश्व की सबसे प्राचीन धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासतों में से एक है। हजारों वर्षों से, इस धर्म ने विभिन्न चुनौतियों का सामना किया है और समय के साथ स्वयं को पुनर्जीवित किया है। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में, सनातन धर्म के शत्रुओं की श्रंखला लंबी होती जा रही है। हम इस श्रंखला के प्रमुख शत्रुओं और उनके प्रभावों की विस्तृत विवरणिका पर नज़र डालते हैं।

धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद
धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद सनातन धर्म के अस्तित्व के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक हैं। विभिन्न कट्टरपंथी संगठन और आतंकवादी समूह धार्मिक असहिष्णुता फैलाते हैं और हिंसा को बढ़ावा देते हैं। यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्व भर में सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए एक गंभीर खतरा है।

राजनीतिक विचारधाराएं
राजनीतिक विचारधाराएं और हित साधने वाले राजनेता अक्सर सनातन धर्म को अपने एजेंडा के लिए उपयोग करते हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा धर्म का राजनीतिकरण किया जाता है, जिससे समाज में विभाजन और वैमनस्यता बढ़ती है। वे समाज को धर्म के आधार पर विभाजित करके अपने वोट बैंक को सुरक्षित करने की कोशिश करते हैं।

मीडिया और प्रचार तंत्र
मीडिया का प्रभाव हमारे समाज में बहुत बड़ा है। दुर्भाग्यवश, कुछ मीडिया संस्थान और सोशल मीडिया प्लेटफार्म सनातन धर्म के खिलाफ नकारात्मक प्रचार करते हैं। यह प्रचार अक्सर सनातन धर्म के सिद्धांतों और परंपराओं को विकृत तरीके से प्रस्तुत करता है, जिससे लोगों में भ्रम और गलतफहमियां उत्पन्न होती हैं।

पश्चिमीकरण और सांस्कृतिक उपनिवेशवाद
पश्चिमीकरण ने भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म पर गहरा प्रभाव डाला है। विशेषकर युवा पीढ़ी पश्चिमी जीवनशैली और मूल्यों का अंधानुकरण कर रही है, जिससे वे अपनी सांस्कृतिक धरोहर से दूर होते जा रहे हैं। यह एक तरह का सांस्कृतिक उपनिवेशवाद है, जो हमारी सांस्कृतिक पहचान को धीरे-धीरे नष्ट कर रहा है।

आर्थिक असमानता और शिक्षा की कमी
आर्थिक असमानता और शिक्षा की कमी भी सनातन धर्म के लिए बड़े खतरे हैं। गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण, लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने में असमर्थ होते हैं। सही शिक्षा के अभाव में, धर्म के सही सिद्धांतों और मूल्यों का ज्ञान नहीं हो पाता, जिससे अंधविश्वास और कुप्रथाओं का प्रसार होता है।

प्रमाणित तथ्य और उदाहरण:

धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद
– मुंबई जैसे सारे देश में हमले, ट्रेनों और बसों में बम धमाके, संसद भवन पर हमला जैसी आतंकी घटनाओं को अंजाम देकर, लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों ने भारतीय नागरिकों को निशाना बनाया। इन हमलों ने धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा दिया और समाज में भय और अविश्वास का माहौल पैदा किया।

राजनीतिक विचारधाराएं
– एक तरफ गैरराजनीतिक संगठन के समर्थन में कार सेवकों द्वारा बाबरी विध्वंस और दूसरी तरफ राजनीतिक दल के आदेश पर सैनिकों की गोलियों से कार सेवकों की हत्याएं एवं बाद हुए दंगे, एक प्रमुख उदाहरण हैं कि कैसे राजनीतिक दल और नेता धार्मिक मुद्दों का उपयोग करके समाज में विभाजन पैदा करते हैं।

मीडिया और प्रचार तंत्र
– कुछ मीडिया चैनल और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर सनातन धर्म के खिलाफ नकारात्मक प्रचार देखा जा सकता है। यह प्रचार अक्सर सनातन धर्म के प्रतीकों, रीति-रिवाजों और त्योहारों का मजाक उड़ाते हुए देखा गया है। इस मानसिकता वाले मीडिया कर्मी सनातन संस्कृति के पूज्य देवी-देवताओं के प्रति आस्था और उनकी पूजा पद्धति को आडम्बर और ढोंग के रूप में दर्शाकर एक वर्गविशेष को खुश करने का प्रयास करते हैं।

पश्चिमीकरण और सांस्कृतिक उपनिवेशवाद
– भारतीय शिक्षा प्रणाली में पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव के कारण, भारतीय युवा अपनी सांस्कृतिक धरोहर और मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि वे अपनी जड़ों से कट जाते हैं और अपनी पहचान खो बैठते हैं। षडयंत्र के तौर पर उन्हें हमारे पौराणिक संदर्भों और महापुरुषों की जीवन गाथाओं से सर्वथा दूर रखा जाता है।

आर्थिक असमानता और शिक्षा की कमी:
– ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में आर्थिक असमानता और शिक्षा की कमी के कारण, लोग अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने में असमर्थ होते हैं। इससे अंधविश्वास और कुप्रथाओं का प्रसार होता है, जो धर्म को कमजोर करता है, जिसका फायदा कोई विधर्मी सनातन शत्रु लालच देकर, भ्रम फैलाकर, नाना प्रकार के सब्जबाग दिखाकर धर्म परिवर्तन कराने में उठाता है।

इस तरह लम्बी होती सनातन शत्रुओं की श्रंखला ने समाज में अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न की हैं। हमें इन शत्रुओं से निपटने के लिए एकजुट होकर, सनातन सुरक्षा के लिए एक ही दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। इसके लिए धार्मिक सहिष्णुता, सही शिक्षा, और अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना होगा। केवल तभी हम अपनी प्राचीन विरासत को सुरक्षित रख पाएंगे और सनातन धर्म को समृद्ध बना पाएंगे।

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