अंगूठा छाप बन गए पत्रकार,समाज में गन्दा है इनका किरदार

दिल्ली/एनसीआर

अंगूठा छाप बन गए पत्रकार,समाज में गन्दा है इनका किरदार

  1. पत्रकारिता के पवित्र पेशे को कलंकित करते अंगूठा छाप पत्रकार
  2. अच्छे पत्रकारों को अब जगह जगह झेलनी पड़ रही है जलालत
  3. पत्रकार मुनीष अल्वी की कलम से विशेष खबर,पढ़ें

नोएडा/गाजियाबाद/आगरा/गाजियाबाद/समस्त प्रदेश:- लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इन दिनों तथाकथित अंगूठा छाप पत्रकारों के कारण कमजोर होता जा रहा है।मान सम्मान भी कम होता जा रहा है। तथाकथित अंगूठा छाप पत्रकार जिले में पुलिस विभाग और आला अधिकारियों से अपनी फोटो सेल्फी और उनके साथ जन्मदिन एवं अन्य उत्सव की तस्वीरें खिंचवाकर जनता के सामने अपनी हनक दिखाने से भी नहीं पीछे हटते हैं। और इसी हनक से उनकी वसूली का भी कार्यक्रम का शुभारंभ हो जाता है। इन्हें पत्रकारिता का ककहरा नहीं आता है लेकिन बातें बड़े स्तर पर मिलेगी कमिश्नर और जिलाधिकारी से नीचे इनकी बात नहीं होती है।इसका सबसे बड़ा कारण है कि आज की भागमभाग भरी जिंदगी में युवा पीढ़ी को लगता है की पत्रकारिता ही एक ऐसा रास्ता है ।जिसमें वह अपनी हनक को कायम कर सकता है । लेकिन पत्रकारिता का यह अध्याय नहीं है पत्रकारिता यह कोई उद्देश्य भी नहीं है । बल्कि पत्रकारिता एक उद्देश्य होता है कि समाज में फैली बुराइयों को दूर कर समाज में स्वच्छ वातावरण का माहौल बनाना सच्चाई लिखना जनता की बातों को सरकार तक पहुंचाना और सरकार की बातें जनता तक पहुंचाना ,लेकिन अंगूठा छाप लोगो ने तो पत्रकारिता को ही बुराइयों से जकड़ दिया है। समाज की कुरूतियो को छोड़कर अब यह तथाकथित पत्रकार खुद समाज को दूषित कर रहे हैं। क्योंकि इनमें ना तो पत्रकारिता का गुण है और ना ही लिखने की तमीज होती है क्योंकि यह हिंदी लिखना नहीं जानते बोल बोलकर लिखते हैं कुछ सही लिखा जाता है और कुछ गलत।अंगूठा छाप पत्रकारों पर तो कला अक्षर भैंस बराबर का सिद्धांत लागू होता है। परंतु इन अंगूठा छाप पत्रकारों को पत्रकार बनाने वाली संस्था यह भी नहीं देखती है कि यह पत्रकार किस लायक है क्या कर सकता है हिंदी लिखना जानता है। बल्कि आज कल तमाम पत्रकारिता जगत से जुड़ी संस्थाओं ने तो लोगों को पैसे लेकर पत्रकार बनाने का चलन शुरू कर दिया है। मात्र 3 से 4 हजार रूपये में जिले की कमान एक ऐसे युवक के हाथ में सौंप दी जाती है जिसके बारे में ना तो संस्था को ही जानकारी होती है और ना ही उस बेरोजगार युवक को पत्रकारिता के बारे में कोई जानकारी होती है । इन संस्था को मतलब होता है तो केवल और केवल पत्रकार से होने वाली ऊपरी कमाई से और यही कारण है कि जब 3 से 4 हजार रूपये लगाकर पत्रकार मैदान में उतरता है तो वह कथित तौर से तथाकथित पत्रकार बनकर निकलता है । क्योंकि उसके ऊपर संस्था का भी दबाव होता है कि संस्था लगातार उससे विज्ञापन के नाम पर धन वसूली के गुण सीखने का काम करती रहती है । इन्हीं तथाकथित पत्रकारों के चलते ईमानदार और जमीन पर उतर के समाज की गंदगी को दुनिया के सामने लाने वाले पत्रकारों को भी जलालत का सामना करना पड़ता है। क्योंकि कहते हैं कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा बना देती है। यही काम यह अंगूठा छाप पत्रकार आज समाज में कर रहे हैं।जल्द ही सरकार द्वारा इन पर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हालात और ज्यादा खराब हो जाएंगे ।

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