कांवरियों के यात्रा मार्ग में जाति-धर्म की पहचान पर राजनीतिक बवाल घोर निंदनीय:- प्रो. कैप्टन डा. अखिलेश्वर शुक्ला

Video News

कांवरियों के यात्रा मार्ग में जाति-धर्म की पहचान पर राजनीतिक बवाल घोर निंदनीय:- प्रो. कैप्टन डा. अखिलेश्वर शुक्ला

संवाददाता,, सुनील मिश्रा

संवैधानिक ब्यवस्था पर दोहरी दृष्टि राष्ट्रीय हित में बिल्कुल नहीं: प्रो. कैप्टन डा. अखिलेश्वर शुक्ला

जौनपुर। भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अभी तक राजनीतिक सोंच समक्ष में जो प्रगति दृष्टिगोचर हो रहा है,- वह यह है कि राजनीतिक दल हो या नेतृत्व: किसी की सोच समक्ष राष्ट्रीय हित पर केंद्रित है? या राजनीतिक हित पर ? यह लगभग स्पष्ट होता दिख रहा है।
अभी तक तो 18वीं लोकसभा में हो रहे वाद विवाद के स्तर पर आमजन की चिंता इस बात को लेकर थी कि सड़क और संसद के भाषणों में जो अंतर दिखना चाहिए – उसमें काफी गिरावट नजर आने लगी है । वहीं कांवड़ यात्रा को लेकर रास्ते में दुकान, ढाबा, ठेला, गुमटी वालों को अपनी पहचान जगजाहिर करने का जो प्रशासनिक फरमान जारी किया गया है। उसपर राजनीतिक लाभ लेने की दलों एवं नेताओं में होड़ मची हुई है। न्यूज़ चैनलों को भी अच्छा सा बैठे बैठाये मसाला मिल गया है।
इस पर हो रहे बयानबाजी को अगर देखा जाए तो ऐसा लगता है कि यह निर्णय असंवैधानिक है ? वास्तव में राजनीति करने वालों की सफलता का एक ही सूत्र है कि वह जो कुछ भी बोलें -यह मान कर बोलें की जनता कुछ भी न जानती है न समक्षती है,-हम जो कुछ भी बोलेंगे समर्थक समर्थन ही नहीं करेंगे बल्कि कटने मरने को तैयार रहेंगे।
ऐसी स्थिति एवं सोंच लगभग सभी दलों की है। इसीलिए भारतीय शिक्षा ब्यवस्था को लगभग बर्बाद किया जा चुका है। लार्ड मैकाले का यह मानना कि भारत पर शासन करना है तो यहां की शिक्षा ब्यवस्था को प्रभावित करने की आवश्यकता है। इस नीति पर स्वतंत्र भारत के राजनीतिक दलों का भी अटुट श्रद्धां एवं विश्वास है। यही कारण है कि उसी शिक्षा ब्यवस्था को बरकरार रखते हुए समय समय पर बदलाव के नाम पर शोध किया जाता रहा है। कुल मिलाकर शिक्षण संस्थान डिग्री प्रदान कर बेरोजगार पैदा करने की फैक्ट्री का काम कर रहे हैं ।
कुल मिलाकर भारतीय संवैधानिक ब्यवस्था में जाति-धर्म को मान्यता दी गई है । इस तथ्य को हम नकार नहीं सकते। एक व्यक्ति शिक्षण संस्थाओं से लेकर किसी भी सरकारी कार्यों में अपने जाति-धर्म का जिक्र किए बगैर एक कदम आगे नहीं बढ़ सकता है। अर्थात जन्म से लेकर मृत्यु तक जाति-धर्म का जिक्र हर दस्तावेज में करता है। यह हमारी संवैधानिक ब्यवस्था है। फिर कांवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले या फिर पुरे देश के व्यापारिक प्रतिष्ठानों दुकानों को जो संवैधानिक ब्यवस्था को जानते और मानते हैं -अपनी पहचान जगजाहिर करने में कोई परेशानी नहीं होगी। यदि परेशानी है तो सिर्फ उन नेताओं को जिनकी दुकानें ऐसे मुद्दों पर ही जीवित है। वरना ऐसे नेताओं को संसदीय मर्यादा एवं राष्ट्रीय हित पर केंद्रित होकर ही राजनीति में जीवित रहने की मजबूरी हो जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *