करबला के शहीदों को याद करने का दिन शहादत की अनोखी मिसाल मुहर्रम
इसी दिन पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन की कर्बला की जंग में परिवार और दोस्तों के साथ हत्या कर दी गई थी। उन्होंने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी जान देकर इस्लाम धर्म को नया जीवन प्रदान किया था।
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मुहर्रम इस्लाम धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें दस दिन इमाम हुसैन के शोक में मनाए जाते हैं। जिसे गम का महीना भी कहा जाता है। इस दिन को रोज-ए-अशुरा भी कहते हैं। सड़कों पर ताजिये (मातम का जुलूस) निकाला जाता है।
शहादत की अनोखी मिसाल यह मोहर्रम आज कर्बला के शहीदों को याद करने का भी दिन है। अगर पूरे मोहर्रम महीने की बात करें तो इसी महीने में मुसलमानों के आदरणीय पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब, मुस्तफा सल्लाहों अलैह व आलही वसल्लम ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था। इस पूरे महीने का सबसे अहम दिन होता है, 10वां मुहर्रम, जो आज यानी 17 जुलाई को मनाया जा रहा है।
680 ईस्वी में इसी दिन पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन की कर्बला की जंग परिवार और दोस्तों के साथ हत्या कर दी गई थी। मान्यता है कि उन्होंने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी जान दी थी। इस दिन पैगंबर मुहम्मद साहब के नाती की शहादत तथा करबला के शहीदों के बलिदानों को याद किया जाता हैं। करबला के शहीदों ने इस्लाम धर्म को नया जीवन प्रदान किया था।
गम के इस महीने में 10वें मुहर्रम पर शिया समुदाय के लोग काले कपड़े पहनकर सड़कों पर जुलूस निकालते हैं और ‘या हुसैन’ का नारा लगाते हुए मातम मनाते हैं, वहीं दूसरी ओर सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में दो दिन रोजा रखते हैं।
गम के इस महीने में 10वें मुहर्रम पर शिया मुस्लिम काले कपड़े पहनकर सड़कों पर जुलूस निकालते हैं और मातम मनाते हैं। इस दौरान वह ‘या हुसैन या हुसैन’ का नारा भी लगाते हैं। वह इस बात पर जोर देते हैं कि हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी जान दी, इसलिए उनके सम्मान में मातम मनाते हैं। शिया मुस्लिम 10 दिन तक अपना दुख दिखाते हैं। वहीं दूसरी ओर सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में दो दिन (9वें और 10वें या 10वें और 11वें दिन) रोजे रखते हैं।
शिया और सुन्नी दोनों ही कुरान और प्रोफेट मोहम्मद में विश्वास रखते हैं। दोनों ही इस्लाम की अधिकतर बातों पर सहमत रहते हैं। दोनों में फर्क इतिहास, विचारधारा और लीडरशिप से जुड़ा हुआ है।
इसी के साथ शिया और सुन्नी के बीच झगड़े की शुरुआत भी 632 ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद की मौत के बाद हुई। जिसकी वजह थी खलीफा का चुनाव। मतलब पैगंबर की अनुपस्थिति में उनका खलीफा कौन होगा ? जहां एक ओर अधिकतर लोग पैगंबर के करीबी अबु बकर की तरफ थे, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों ने हजरत मोहम्मद के दामाद अली को खलीफा बनाने की पैरवी की। उनका कहना था कि पैगंबर ने अली को मुस्लिम समुदाय के राजनीतिक और धार्मिक लीडर के तौर पर चुना था। जिन लोगों ने अबु बकर में अपना भरोसा दिखाया, वही सुन्नी कहलाए। यह लोग पैगंबर मोहम्मद की परंपरा और विचारधारा को मानते हैं। वहीं दूसरी ओर, जिन लोगों ने अली में भरोसा किया वह शिया कहलाए। इस तरह से अबु बकर पहले खलीफा बने और अली चौथे खलीफा बने। हालांकि, अली की लीडरशिप को पैगंबर की पत्नी और अबु बकर की बेटी आयशा ने चुनौती भी दी थी। इसके बाद इराक के बसरा में 656 ईस्वी में अली और आयशा के बीच युद्ध हुआ। आयशा उस युद्ध में हार गईं, जिससे
शिया-सुन्नी के बीच की खाई और भी गहरी हो गई। इसके बाद दमिश्क के मुस्लिम गवर्नर मुआविया ने भी अली के खिलाफ जंग छेड़ दी, जिसने दोनों के बीच दूरियां और भी अधिक बढ़ा दीं। आने वाले कुछ सालों में मुआविया खलीफा बन गए और उन्होंने 670-750 ईस्वी
में उम्याद वंश की स्थापना की। इसके बाद अली और पैगंबर मोहम्मद की बेटी फातिमा के बेटे यानी पैगंबर के नवासे हुसैन ने इराक के कुफा में मुआविया के बेटे यजीद के खिलाफ जंग छेड़ दी। शिया मुस्लिम इसे ही कर्बला की जंग कहते हैं, जो धार्मिक रूप से बहुत बड़ी अहमियत रखता है। इस जंग में हुसैन की हत्या कर दी गई थी। मतलब वह शहीद हो गए थे और उनकी सेना हार गई थी। वक्त के साथ-साथ इस्लाम बढ़ता गया। शिया और सुन्नी मुस्लिमों ने अलग-अलग विचारधारा अपना ली। सुन्नी मुस्लिमों ने सेक्युलर लीडरशिप चुनी। उन्होंने उम्याद (660-750 ईस्वी तक डैमैस्कस पर आधारित) के दौरान के खलीफाओं की सेक्युलर लीडरशिप पर भरोसा किया। सुन्नी मुस्लिमों को सातवीं और आठवीं शताब्दी में शुरू हुए 4 इस्लामिक स्कूलों से हर बात पर निर्देश मिलते हैं। न सिर्फ धार्मिक, बल्कि कानून, परिवार, बैंकिंग, फाइनेंस यहां तक कि पर्यावरण से जुड़ी बातों पर भी सुन्नी मुस्लिम इन्हीं स्कूलों से मदद लेकर फैसला लेते हैं। वहीं दूसरी ओर शिया मुस्लिम इमामों को अपना धार्मिक नेता मानते हैं, जिन्हें वह पैगंबर मोहम्मद के परिवार द्वारा नियुक्त किया हुआ मानते हैं। शिया मुस्लिम मानते हैं कि पैगंबर का परिवार ही उनका असली लीडर है। पैगंबर के वंशज की गैर मौजूदगी में शिया मुस्लिम उनकी जगह उनके प्रतिनिधि को नियुक्त करते हैं।
आज के समय में दुनिया भर में मुस्लिम आबादी का 80-90 फीसदी हिस्सा सुन्नी है। जबकि शिया मुस्लिम की आबादी बेहद कम करीब 10-20 फीसदी ही बताई जाती है।