समाजसेवी रामानन्द तिवारी के द्वारा लिखा गया पिता पर कविता
जिससे सब कुछ पाया है, जिसने सब कुछ सिखलाया है,
कोटि-कोटि नमन ऐसे पिता को, जिन्होंने हर पल साथ निभाया है।
वो रोता नही मुश्किलों में बस मुस्कुरा कर रह जाता है।
वो फरिश्ता है दोस्तों जिसे इंसान कहा जाता है।
कहने को तो हजारों नाम है उसके दुनिया मे, पर
आख़िरी शब्दों मे सुन लो उसे पिता कहा जाता है।
अपनी मेहनत की कमाई को परिवार पर हँसते हँसते लुटा देता है।
वो पिता ही है जो मुश्किलों मे भी मुस्करा देता है।
मैं रोता हूँ वो हंसा देता है, मैं रूठता हूँ वो मना लेता है,
ना जाने किस मिट्टी का बना है ये पिता, जो हर दर्द को
अपने सीने में छुपा के, पूरे परिवार के सामने