सांप न भूले डंक।।
किए धरे का मूर्ख कब, समझे सौरभ मोल।
दंभ भरे हर बात पर, बोले उल्टे बोल।।
भलाइयों को आजकल, भला पूछता कौन।
सत्य भरे इस प्रश्न पर, आखिर सब क्यों मौन।।
भले फसल सा सींचिए, रखें खूब संवार।
वक्त पड़े पहले छंटे, सौरभ खरपतवार।।
आंगन की हर बात जब, लांघ गई दहलीज।
समझो उस घर की उतर, सौरभ गई कमीज।।
हुए कहां कब दोगले, सौरभ किसके मित्र।
कांधे औरों के चढ़े, खींचें खुद के चित्र।।
मतलब से रिश्ते जुड़े, होते नहीं निशंक।
भले दूध कितना रखो, सांप न भूले डंक।।
भाई-भाई में छिड़ी, बात-बात पर जंग।
देख पड़ोसी खुश हुए, चढ़े शत्रु को रंग।।
-डॉ. सत्यवान सौरभ