इन दिनों पूरे देश के साथ-साथ दुनिया की क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की निगाहें 23 जुलाई को पेश किए जाने वाले वर्ष 2024-25 के पूर्ण बजट की ओर लगी हैं। हाल ही में आयी वैश्विक ब्रोकरेज कंपनी मार्गन स्टेनली की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के नए बजट में राजस्व व्यय के मुकाबले पूंजीगत खर्च पर जोर रहेगा और इससे मध्यम वर्ग लाभान्वित होते हुए दिखाई दे सकता है। साथ ही इसमें 2047 तक विकसित भारत के लिए खाका और राजकोषीय मजबूती के लिए मध्यम अवधि की योजना पेश की जा सकती है। नए बजट के जरिये मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ाकर मांग में वृद्धि करके अर्थव्यवस्था को गतिशील करने की रणनीति पर आगे बढ़ा जा सकता है।
मध्यम वर्ग को राहत देने को लेकर लगातार मांग तेज हुई है। विगत वर्षों में जहां गरीब वर्ग के लिए राहतों का ऐलान किया गया, वहीं कॉर्पोरेट जगत पर भी ध्यान दिया। लेकिन राहत पाने के मामले में सबसे अधिक टैक्स देने वाला मध्यम वर्ग पीछे छूट गया। 18वीं लोकसभा चुनाव के मतदान में मध्यम वर्ग की नाराजगी भी दिखाई दी है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री के संबोधन में जिक्र था कि मध्यम वर्ग कैसे कुछ बचत बढ़ा सके तथा इस वर्ग के लोगों की जिंदगी को कैसे आसान बनाया जा सके, इस परिप्रेक्ष्य में रणनीति पूर्वक आगे बढ़ा जाएगा।
ऐसी मजबूत वित्तीय मुट्ठी से आयकर के नए और पुराने दोनों स्लैब की व्यवस्थाओं के तहत करदाताओं व मध्यम वर्ग को राहतों से लाभान्वित किया जा सकता है। खासतौर से वेतनभोगी वर्ग को लाभान्वित करने के भी विशेष प्रावधान नए बजट में दिखाई दे सकते हैं। इसके तहत मानक कटौती यानी स्टैंडर्ड डिडक्शन सीमा को 50,000 रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये तक किया जा सकता है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2018 में मानक कटौती की सीमा 40 हजार रुपयेे थी और वर्ष 2019 में इसे बढ़ाकर 50 हजार रुपये किया गया था। मानक कटौती वह धनराशि है, जिसे वेतनभोगी करदाता अपनी कर योग्य आय में से बिना कोई सबूत दिए घटा सकता है। टीडीएस के कारण वेतनभोगी अपने वेतन पर ईमानदारी से आयकर चुकाते हैं जहां आमदनी कम बताने की गुंजाइश नगण्य होती है। वेतनभोगी वर्ग द्वारा नए बजट में राहत की अपेक्षा इसलिए भी न्यायसंगत है कि इस वर्ग द्वारा दिया गया कुल आयकर पेशेवरों और कारोबारी करदाता वर्ग द्वारा चुकाए गए आयकर से काफी अधिक होता है।
नए बजट के तहत आयकर से संबंधित विभिन्न टैक्स छूटों में वृद्धि की जा सकती है। मौजूदा समय में धारा 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये की छूट मिलती है। इसके तहत ईपीएफ, पीपीएफ, एनएससी, जीवन बीमा, बच्चों की ट्यूशन फीस और होम लोन का मूलधन भुगतान भी शामिल है। मकानों की बढ़ती हुई कीमत को देखते हुए धारा 80सी के तहत 2.5 लाख से तीन लाख की छूट दी जा सकती है। इसी तरह इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80डी के तहत कर कटौती की सीमा को बढ़ाया जा सकता है। 80डी के तहत हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर टैक्स छूट बढ़ सकती है ताकि टैक्पेयर्स हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर प्रेरित हों। इसके साथ-साथ वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष सीमा बढ़ाई जाने से लोगों को स्वास्थ बीमा कराने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। वहीं पीपीएफ में योगदान की वार्षिक सीमा को मौजूदा 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये किया जा सकता है।
नि:संदेह देश में कर सुधारों से आयकर संग्रहण में आशातीत वृद्धि हुई है। लेकिन अभी आयकर के दायरे में इजाफा किए जाने की बड़ी संभावनाएं हैं। जहां वर्ष 2024-25 के बजट से आयकर राहत दी जा सकती है, वहीं बजट में आयकर के दायरे का विस्तार करने की नई रणनीति का ऐलान संभव है। महत्वपूर्ण यह भी कि बड़ी संख्या में उद्योग-कारोबार सेक्टर में कार्यरत रहते हुए कमाई करने वाले, महंगी व विलासिता की वस्तुओं का उपयोग करने वाले तथा पर्यटन के लिए विदेश यात्राएं करने वालों में से बड़ी संख्या में लोग या तो आयकर न देने का प्रयास करते हैं या फिर बहुत कम आयकर देते हैं। रिपोर्टों के मुताबिक, पिछले एक वर्ष में करीब 24 लाख लोगों ने 10 लाख रुपये से ज्यादा महंगी कारें खरीदी, करीब 25 लाख लोगों ने 50 लाख रुपये से अधिक कीमत के महंगे घर खरीदे वहीं वर्ष 2022 में देश के करीब 2.16 करोड़ लोगों ने पर्यटन के मद्देनजर विदेश यात्राएं कीं। जाहिर है पर्याप्त कमाई के कारण ही ये खरीदियां और विदेश यात्राएं संभव हैं। लेकिन ऊंची कमाई करके भी बड़ी संख्या में लोग आयकर नहीं देना चाहते। बता दें कि वर्ष 2023-24 में देश के 140 करोड़ से अधिक लोगों में से सिर्फ 2.79 करोड़ लोगों ने ही आयकर दिया है। यानी देश की आबादी के 1.97 फीसदी लोगों ने ही आयकर दिया है। ऐसे में आयकर का पूरा बोझ दो फीसदी से भी कम आबादी द्वारा उठाया जा रहा है। साथ ही देश में कुल आयकर रिटर्न के करीब 70 फीसदी आयकर रिटर्न शून्य आयकर देयता बताते हुए दिखाई दिए हैं। ऐसे में देश में आयकर संग्रहण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आकार की तुलना में महज 11.7 फीसदी ही है। जबकि यह जर्मनी में 38 फीसदी, जापान में 31 फीसदी, ब्रिटेन में 25 फीसदी, अमेरिका में 25 फीसदी और चीन में 18 फीसदी है। वहीं अमेरिका की 60 फीसदी और ब्रिटेन की 55 फीसदी आबादी आयकर चुकाती है। दुनिया की कई छोटी-छोटी अर्थव्यवस्थाओं में संगृहीत किए जाने वाले आयकर का उनकी जीडीपी में बड़ा योगदान है।
उम्मीद करें कि इस बार वित्तमंत्री नए बजट से ऐसे लोगों को चिन्हित करने की नई रणनीति के साथ दिखाई देंगी, जिससे वास्तविक आमदनी का सही मूल्यांकन हो सके, लोगों के वित्तीय लेनदेन के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त हो सके। साथ ही जो वास्तविक कमाई से कम पर आयकर देते हैं, उन्हें भी चिन्हित करके अपेक्षित आयकर चुकाने के लिए बाध्य किया जा सके। निश्चित रूप से इससे देश में टैक्स संग्रहण बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।